फ़रोग़-उल-इस्लाम





सुनो 




सुनो मेरी जाँ

सुनो पवन में उड़ते पंछी गीत गा रहे

उन गीतों में तुम जैसी एक चंचल युवती का वर्णन है

लेकिन तुम जैसी चंचल, इठलाती, बलखाती युवती तो आज तलक मैंने ना देखी और ना सोची

तुम जैसा कोई योवन जिसमें इंद्र धनुष के रंग भरे हों

ऐसा योवन जिससे खुशबू फूट रही हो हल्की हल्की

ऐसा योवन जिसका तन और मन दोनों ही इंद्र लोक की याद दिलाए

तन बिल्कुल परयों के जैसा

और मन जैसे गंगा जल हो

मेंने तो देखा ना सोचा

तो क्या ऐसा मान लूँ मैं भी

ये पंछी जो गान करे हैं

तेरा ही ये मान करे हैं






बारिश 




ये बारिशों का हसीन मौसम

हसीन होगा ज़रूर होगा

मगर मुझे तो ये काटता है

ये अपनी बूंदों से मेरे मन की उजाड़ बस्ती जिला रहा है

उस एक बस्ती में कितनी यादें दफ़न हुई हैं मैं जानता हूँ

मैं जानता हूँ तामान यादों में तुम ही तुम हो

तुम्हारा चेहरा, तुम्हारी बातें, तुम्हारा वो दिल फ़रेब लेहजा

जिसे भुलाना मैं चाहता हूं

मगर ये बारिश जो जाने कितनों को इतनी प्यारी हसीन लगती पर मुझे तो

बड़ी ही ज़ालिम लगे हमेशा

के जब भी छूती है मेरा सीना

तुम्हारी यादें जगा के जाए.