फिर आना तुम













1. फिर आना तुम



शिशिर के सर्द हवाओं ने

तुझे भी

मुझे भी

रखा बाँधकर

अकड़न में

जकड़न में

मैं गिरि शिखरों को

हिम-चादर ओढ़ाती रही

तिनका-तिनका झुलसाती रही

हर झोंकों में शूल सी गढ़ती रही

सौर्य ऊर्जा को मात देती रही



फिर आना तुम

तुम्हारी कल्पनाओं के

यथार्थ रंगों में

मैं बिछ जाऊँगी

हरित चोला पहने

इन शुष्क वादियों में

भँवरों को

तितलियों को

अपने मोह फाँस में बाँधती

महकती, खिलखिलाती

मैं सज जाऊँगी

रंग-बिरंगे फूलों में



फिर आना तुम

मैं सात रंगों वाला

आसमानी माला लिए

तुम्हारी राह देखूँगी।












2. हमारा जंगल




जीवन से भरा

यौवन से लबालब

प्रकृति का अपार वैभव

दुल्हन सी सजी हरित-वन

जीवन को जीवन देता

शीतल-सौम्य चंचल वायु

लघु सरिताएँ बहतीं दीर्घ आयु

अचल गिरि के चट्टानी वक्ष स्थल

मार्ग प्रशस्त करें

अनंत यायावरी झरनों को

पत्ते-पत्ते, डाली-डाली

बोले समरसता की बोली

लघु भी, विराट भी

कोमल भी, कठोर भी

पुष्प भी, कंटक भी

गरल भी, अमृत भी

मार्ग भी, भटकाव भी

जीवन भी, मृत्यु भी

विविध वनस्पतियों के स्वामी भी

सबके सृष्टा – एक ब्रह्म भी।






3. तू रहेगी सदा


जिस जगह

जिस जहाँ

तेरा बसेरा

उस जमीं

उस आसमाँ

रजनीगंधा बन

रातों को महके तू

सूर्यमुखी बन

किरणों को चूमे तू

उन्मुक्त परिंदों के

परवाज़ बने तू

अथाह सागर में

क्रीड़ा करे तू

संपूर्ण जड़-चेतन की

सहचरी बने तू

इस जहाँ की

कलुषित पीढ़ाएँ

जिससे सतत लड़ी तू

उसे हरने की

आधार-शक्ति बने तू।

उस जहाँ

और

इस जहाँ के मध्य

अश्रु युक्त स्मृतियों के

महीन धागों से

मजबूत गाँठों का संबंध

वर्तमान बना रहेगा

भविष्य के

हर भविष्य में भी।





























4. मिलाप



कितने दिनों से

व्याकुल धरा

होने को

फिर से हरा-भरा

झेल रही थी

कोप भाजन

सुलगते अम्बर के

अग्नि वर्षा का

पौधा-पौधा

तिनका-तिनका

मुर्च्छित सी पड़ी थी

झुलस-झुलस कर

निशा भी आती

रूठी-रूठी सी

छलकाती न थी

ओस गगरिया



इतने दिनों बाद

बरस पड़ा है

श्वेत-श्यामल

घनघोर घटाएँ

रिमझिम-रिमझिम

सरस बौछारें

पागल दिवानों सा

टूट पड़े

अतृप्त धरा का

करने चुम्बन-आलिंगन

बूँदों के धुन में

सज गयी

सुरों की मेहफिल

समस्त सृष्टि में



धरती-गगन के

प्रेम मिलाप से

बुझी जगत की प्यास

संतप्त जीवन ने

बदली करवट

ली राहत की साँस।

ऐ व्योम वासिनी!

ऐ जीवन धारिणी!

तू न कोई जीवन हरना

संयम अपने हृदय में धरना

प्रेम सही अनुपात में करना

प्यास जगी है तेरी भी माना

मानव रक्त से न तृप्त होना।





























5. मित्रता



मित्र है

तो

साज है

सुर है

लय है

ताल है

जीवन संगीत है।



मित्र है

तो

हमराही है

हमदर्द है

हमराज़ है

जीवन जीवंत है।





मित्र है

तो मौज है

मस्ती है

लड़ाई है

शरारत है

लड़कपन है

जीवन इन्द्रधनुष है।



मित्र है

तो

आशा है

आश्रा है

प्रेरणा है

प्रभाव है

जीवन अर्थपूर्ण है।