अनामिका
अनामिका
লেখক / সংকলক : iPatrika Crawler

अनामिका
चौका
मैं रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी
ज्वालामुखी बेलते हैं पहाड़
भूचाल बेलते हैं घर
सन्नाटे शब्द बेलते हैं, भाटे समुंदर।
रोज़ सुबह सूरज में
एक नया उचकुन लगाकर
एक नई धाह फेंककर
मैं रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी।
पृथ्वी जो खुद एक लोई है
कूरज के हाथों में
रख दी गई है, पूरी की पूरी ही सामने
कि लो, इसे बेलो, पकाओ
जैसे मधुमक्खियाँ अपने पंखों की छांह में
पकाती है शहद।
सारा शहर चुप है
धुल चुके हैं सारे चौकों के बर्तन
बुझ चुकी है आखिरी चूल्हे की राख भी
और मैं
अपने ही वजूद की आँच के आगे
औचक हड़बड़ी में
खुद को ही सानती
खुद को ही गूंधती हुई बार-बार
खुश हूँ कि रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी!
स्त्रियाँ
पढ़ा गया हमको
जैसे पढ़ा जाता है कागज़
बच्चों की फटी कॉपियों का
‘चनाजोर गरम’ के लिफ़ाफे के बनने से पहले
देखा गया हमको
जैसे कि कुफ्त हो उनींदे
देखी जाती है कलाई घड़ी
अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद!
सुना गया हमको
यों ही उड़ते मन से
जैसे सुने जाते हैं फिल्मी गाने
सस्ते कैसेटों पर
ठसाठस्स ठुंसी हुई बस में!
भोगा गया हमको
बहुत दूर के रिश्तेदारों के दुख की तरह
एक दिन हमने कहा –
हम भी इसां हैं
हमें कायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर
जैसे पढ़ा गया होगा बी ए के बाद
नौकरी का पहला विज्ञापन।
देखो तो ऐसे
जैसे कि ठिठुरते हुए देखी जाती है
बहुत दूर जलती हुई आग।
सुनो, हमें अनहद की तरह
और समझो जैसे समझी जाती है
नई-नई सीखी हुई भाषा।
इतना सुनना था कि अधर में लटकती हुई
एक अदृश्य टहनी से
टिड्डियाँ उड़ीं और रंगीन अफवाहें
चीखती हुई ‘चीं-चीं’
‘दुश्चरित्र महिलाएँ, दुश्चरित्र महिलाएँ
किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूली फैलीं
अगरधत्त जंगल लताएँ!
खाती-पीती, सुख से ऊबी
और बेकार बेचैन[ अवारा महिलाओं का ही
शगल हैं ये कहानियाँ और कविताएँ…
फिर, ये इन्होंने थोड़े ही लिखी हैं!’
(कनखियाँ इशारे, फिर कनखी)
बाकी कहानी बस कनखी है।
हे परम पिताओ
परम पुरुषो
बख्शो, बख्शो, अब हमें बख्शो !
Review Comments
সোসাল মিডিয়া কামেন্টস